मेरी कल्पना मैं तुम आते हो
मेरी कल्पना मैं तुम आते हो
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है गिरधर गोपाल मेरी कल्पनाओ मैं तुमअक्सर आते हो ।
माथे मुकुट अधर धरे बंसी ।।
राधा रानी को पनघट पर पल पल पुकारते हो ।
हाथ चक्र मोर पंख लिए अक्सर कल्पनाओं मैं तुम आते हो ।।
पीतांबर धारी सुन्दर मन मोह लेती छवि तुम्हारी ।
बाल गोपाल सखा संग तुम चुराते माखन नटखट लीला करते ।।
है गिरधारी गोपाल अक्सर तुम मेरी
कल्पना मैं आते हो ।
नींद मेरी चुराते चैन मेरा छीन लेते हो ।
नैन मैं काजल तुम्हारा मोह लेता मुझको गिरधारी गोपाल ।।
अक्सर कल्पना मैं धुन मधुर बंसी की रस राग घोलती है ।
है गिरधर गोपाल
अक्सर मेरी कल्पना मैं तुम आते हो ।।
मैया यशौदा की गोद बैठ भ्रमित करते अटखेलिया हज़ार करते ।
राधा को बन छलिया छलते रास तुम महारास रचाते ।।
है गिरधर गोपाल अक्सर मेरी कल्पना मैं तुम आते हो ।
मोहित भ्रमित मुझको भी करते मोह मुझको भी लेते है गिरधर गोपाल ।।
कभी द्रोपति की चिर रक्षा करते ।
तो कभी युद्ध बीच पांडव के बन सारथी मेरे सपने में तुम आते हो ।
वर्षा उपाध्याय
खंडवा, एम. पी.
Shashank मणि Yadava 'सनम'
06-Dec-2023 08:41 PM
सुन्दर सृजन
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Gunjan Kamal
06-Dec-2023 01:31 AM
👏👌
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